अनजान आगे का सफ़र , बूढ़ा हुआ है यह शज़र इससे जिनको छाँव मिले, उनसे ही कई घाव मिले। अनजान आगे का सफ़र , बूढ़ा हुआ है यह शज़र इससे जिनको छाँव मिले, उनसे ही कई ...
तेरे घर के चार फेरे क्या लगे ज़ालिम लगा मक्का-मदीने का सफ़र तमाम हो गया! तेरे घर के चार फेरे क्या लगे ज़ालिम लगा मक्का-मदीने का सफ़र तमाम हो गया!
मैं सेवक तुम स्वामी तुम्हारी जय हो। मैं सेवक तुम स्वामी तुम्हारी जय हो।
कभी ग़म का बादल होगा कभी छाया अंधेरा गहरा होगा कभी तन्हाई का मेला होगा कभी मन यह अकेला ह... कभी ग़म का बादल होगा कभी छाया अंधेरा गहरा होगा कभी तन्हाई का मेला होगा ...
किया था भरोसा जिसपर रूठ गया। किया था भरोसा जिसपर रूठ गया।
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